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लेखनी कहानी -17-Oct-2022..बंधुआ मजदूरी

एक प्रथा कहो या कुप्रथा.... लेकिन इस रिवाज इस प्रथा ने ना जाने कितनों को जीवन को अंधेरे में दफन कर दिया था..। देखा जाए तो आज भी यह प्रथा किसी ना किसी रुप में अभी भी कायम हैं..। मैं बात कर रहीं हूँ... बंधुआ मजदूरी की...। 


एक ऐसी प्रथा जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रहीं थीं...। निचली जाति के या गरीब कुल के लोग साहुकारों या रहीसदारो से ऋण लेते थे और ऋण ना चुकाने पर गुलाम बनकर उनकी मजदूरी करते थे..। 

बंधुआ मतलब बांधकर रखा हुआ... सामान्यत हम पशुओं के लिए इस शब्द का उपयोग करते थे...। लेकिन इस प्रथा में इंसानो के लिए इसे इस्तेमाल किया गया..।हालांकि इस प्रथा का अधिनियम 1975 को पारित किया गया.... जिसमें इंसानी तस्करी, इंसानो का अवैध व्यापार, बेगार के साथ साथ बंधुआ मजदूरी को भी समाप्त करने का प्रस्ताव दिया गया...। जिसे 1976 को प्रतिस्थापित किया गया.. जिसके तहत पूरे देश में कानून सहित इसे समाप्त करने की घोषणा की गई...। 
लेकिन सच तो यह हैं की आज भी हमारे देश में ऐसे ना जाने कितने लोग हैं जो इस प्रथा को अभी तक सहन कर रहे हैं...। पहले ये सब खुलेआम होता था... कर्जा नहीं दिया तो गुलाम बन जाओ... अभी ये सब छिपकर किया जाता हैं... और गरीब वर्ग इसका विरोध भी नहीं कर सकता..। 
श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार आज भी हमारे देश में 300000 से ज्यादा लोग बंधुआ मजदूरी के तहत फंसे हुए हैं...। जिसमें छोटे बच्चों की तादाद बहुत ज्यादा हैं...। 
आप सभी ने भी कभी ना कभी अपने आसपास बहुत से बच्चों को यह कहते जरूर सुना होगा... मेरे माँ बाबा भी यहीं काम करते थे... मैं भी यहीं करता हूँ... जरुरी नहीं हैं की वो ऋण चुका रहा हो पर गुलामी करने की प्रवृत्ति आज भी कहीं ना कही कायम हैं...। 

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10 Comments

Gunjan Kamal

16-Nov-2022 07:32 PM

बहुत ही सुन्दर

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Palak chopra

15-Nov-2022 02:02 PM

Shandar 🌸

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अति सुन्दर रचना है 🌺👌🌸

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